संवाददाता - बागी न्यूज 24 दलितो और पिछड़ों के मसीहा थे, बाबा साहब डॉ बीआर अंबेडकर उनके विचार आज भी प्रासंगिक लालगंज /आजमगढ़ 10 अप्रैल आज...
संवाददाता - बागी न्यूज 24
दलितो और पिछड़ों के मसीहा थे, बाबा साहब डॉ बीआर अंबेडकर उनके विचार आज भी प्रासंगिक लालगंज /आजमगढ़ 10 अप्रैल आजमगढ़ जनपद के लालगंज के अंतर्गत नरायनपुर नेवादा गॉव में बृहद विचार संगोष्ठी का आयोजन आयोजित किया गया। 14 अप्रैल को बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती पर जुलुस व झांकी निकालने पर रणनीति तय की गई।इस संगोष्ठी का मुख्य विषय था यदि बाबा साहब न होते तो वर्तमान भारत की दशा एवं दशा पर वक्ताओं ने अपने -अपने विचार रखें।विद्वान वक्ताओं ने कहा कि सामाजिक सुधार के लिए कानूनी मार्गों के महत्त्व को पहचानते हुए, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भी ब्रिटिश अधिकारियों के सामने दलितों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने लंदन में गोलमेज सम्मेलनों में दलितों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया, और दलितों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की वकालत की। बाबासाहेब के प्रयासों का परिणाम 1932 के पूना पैक्ट के रूप में सामने आया, जिसने आम निर्वाचन क्षेत्रों में दलितों के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया।उन्होंने कहा कि भारतीय राजनीति में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की सबसे स्थायी विरासत संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका है, जो भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी। भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने सुनिश्चित किया कि दस्तावेज में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत निहित हों। अस्पृश्यता के उन्मूलन और कुछ पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण जैसे प्रावधानों को शामिल करना जातिगत भेदभाव और असमानता के खतरों से मुक्त स्वतंत्र भारत के उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है।वक्ताओं ने कहा कि विद्वान राहुल सांकृत्यायन पूरी दुनिया का भ्रमण कर उन्होंने सभी धर्म का अध्ययन किया। अंत में मानवतावादी बौद्ध धर्म को स्वीकार किया।वह हमेशा उच्च- नीच,अमीरी- गरीबी, छूत -अछूत के खिलाफ थे। वह पूंजीवादी और सांप्रदायिक तत्वों के विरुद्ध बराबर संघर्ष करते थे। उनके विचार आज भी भारत की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में बहुत ही प्रासंगिक है। उनके विचारों पर चलकर देश की एकता और अखंडता, गरीबी, महंगाई,बेरोजगारी को खत्म किया जा सकता है। राहुल सांकृत्यायन जी ने बहुत से उपन्यास, साहित्य लिखकर समाज में फैली प्राप्त बुराइयों के विरोध में लोगों को जागरूक किया है। इस अवसर पर आयोजक नरायन भारती, संजय बौद्ध,जयराम मास्टर, तेज प्रताप मास्टर, नंदलाल मास्टर,भाजपा के रामचंदर प्रधान, बसपा नेता रामबचन, अशोक,विजय, रविकांत मास्टर, सर्वेश, प्रधान कन्हैया आदि लोग उपस्थित थे।
दलितो और पिछड़ों के मसीहा थे, बाबा साहब डॉ बीआर अंबेडकर उनके विचार आज भी प्रासंगिक
लालगंज /आजमगढ़ 10 अप्रैल आजमगढ़ जनपद के लालगंज के अंतर्गत नरायनपुर नेवादा गॉव में बृहद विचार संगोष्ठी का आयोजन आयोजित किया गया। 14 अप्रैल को बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती पर जुलुस व झांकी निकालने पर रणनीति तय की गई।इस संगोष्ठी का मुख्य विषय था यदि बाबा साहब न होते तो वर्तमान भारत की दशा एवं दशा पर वक्ताओं ने अपने -अपने विचार रखें।
विद्वान वक्ताओं ने कहा कि सामाजिक सुधार के लिए कानूनी मार्गों के महत्त्व को पहचानते हुए, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भी ब्रिटिश अधिकारियों के सामने दलितों का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने लंदन में गोलमेज सम्मेलनों में दलितों के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया, और दलितों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की वकालत की। बाबासाहेब के प्रयासों का परिणाम 1932 के पूना पैक्ट के रूप में सामने आया, जिसने आम निर्वाचन क्षेत्रों में दलितों के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया।
उन्होंने कहा कि भारतीय राजनीति में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की सबसे स्थायी विरासत संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका है, जो भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी। भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने सुनिश्चित किया कि दस्तावेज में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत निहित हों। अस्पृश्यता के उन्मूलन और कुछ पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण जैसे प्रावधानों को शामिल करना जातिगत भेदभाव और असमानता के खतरों से मुक्त स्वतंत्र भारत के उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है।
वक्ताओं ने कहा कि
विद्वान राहुल सांकृत्यायन पूरी दुनिया का भ्रमण कर उन्होंने सभी धर्म का अध्ययन किया। अंत में मानवतावादी बौद्ध धर्म को स्वीकार किया।वह हमेशा उच्च- नीच,अमीरी- गरीबी, छूत -अछूत के खिलाफ थे। वह पूंजीवादी और सांप्रदायिक तत्वों के विरुद्ध बराबर संघर्ष करते थे। उनके विचार आज भी भारत की वर्तमान राजनीतिक स्थिति में बहुत ही प्रासंगिक है। उनके विचारों पर चलकर देश की एकता और अखंडता, गरीबी, महंगाई,बेरोजगारी को खत्म किया जा सकता है। राहुल सांकृत्यायन जी ने बहुत से उपन्यास, साहित्य लिखकर समाज में फैली प्राप्त बुराइयों के विरोध में लोगों को जागरूक किया है।
इस अवसर पर आयोजक नरायन भारती, संजय बौद्ध,जयराम मास्टर, तेज प्रताप मास्टर, नंदलाल मास्टर,भाजपा के रामचंदर प्रधान, बसपा नेता रामबचन, अशोक,विजय, रविकांत मास्टर, सर्वेश, प्रधान कन्हैया आदि लोग उपस्थित थे।
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