संवाददाता - बागी न्यूज 24 श्री भास्कर नेरुरकर, हेड, हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन टीम, बजाज आलियांज़ जनरल इंश्योरेंस कभी-कभी हमारे स्वास्थ्य मे...
संवाददाता - बागी न्यूज 24
श्री भास्कर नेरुरकर, हेड, हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन टीम, बजाज आलियांज़ जनरल इंश्योरेंस
कभी-कभी हमारे स्वास्थ्य में अप्रत्याशित रूप से बदलाव आ जाते हैं. भले ही हम स्वस्थ दिखाई दें, फिर भी हमारे अंदर कुछ ऐसी छिपी हुई स्वास्थ्य समस्याएं या लक्षण हो सकते हैं जो अचानक हमारे भविष्य को बदल सकते हैं, खासकर अगर वे लंबे समय से चलते आ रहे हों. पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना आपको मानसिक रूप से थका देता है और इसमें खर्च भी ज़्यादा होते हैं. इसमें नियमित रूप से डॉक्टर से मिलना, दवाएं लेना और इलाज करवाना शामिल हो सकते हैं. दिल से जुड़ी समस्याएं, कैंसर, डायबिटीज़, अर्थराइटिस, ब्लड प्रेशर बढ़ना और हृदयाघात जैसी लंबे समय से चली आ रही बीमारियां मृत्यु और शारीरिक विकलांगता का कारण बनती हैं. इन बीमारियों के कुछ आम कारणों में धूम्रपान, ज़्यादा शराब पीना, व्यायाम न करना और खराब खानपान शामिल हैं. अफसोस की बात यह है कि जीवनशैली से जुड़ी कुछ पुरानी बीमारियां न तो पूरी तरह ठीक की जा सकती हैं, न ही टीकाकरण से उनसे बचाव संभव है और न ही वे समय के साथ अपने आप ठीक होती हैं. इन बीमारियों के इलाज से सिर्फ इनके लक्षणों को काबू में किया जा सकता है और यह इलाज कई सालों तक चल सकता है. सही इलाज के बिना, ये बीमारियां जानलेवा साबित हो सकती हैं. इन स्वास्थ्य समस्याओं को संभालने में काफी खर्चा हो सकता है, जिससे लोगों की बचत का पैसा इस्तेमाल हो जाता है और उन पर और उनके परिवार पर फाइनेंशियल दबाव की स्थिति पैदा हो सकती है.
लंबे समय से चल रही बीमारियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने से पहले इन बातों पर विचार करें:
कॉम्प्रिहेंसिव कवरेज: पुरानी बीमारियों से निपटना महंगा और तनावपूर्ण हो सकता है. इसलिए कॉम्प्रिहेंसिव मेडिकल कवरेज होना बहुत ज़रूरी है. यह सुनिश्चित करता है कि डायबिटीज़, हृदय रोग या कैंसर जैसी लंबे समय से चल रही बीमारियों से जूझ रहे लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार मेडिकल केयर मिल जाए. इसमें नियमित रूप से डॉक्टर से मिलना, टेस्ट, दवाएं और सर्जरी भी शामिल हैं. कॉम्प्रिहेंसिव हेल्थ इंश्योरेंस के साथ, ये खर्च कवर किए जाते हैं, जिससे व्यक्ति को फाइनेंशियल तौर पर राहत मिलती है और वह अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाते हैं. इस कवरेज में हॉस्पिटल में भर्ती होने, आउटपेशेंट केयर और चेक-अप जैसे बचाव संबंधी सेवाएं भी शामिल होती हैं. इसके साथ ही यह मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और जीवनशैली में बदलाव के लिए मदद भी प्रदान करता है, जिससे लोग अपनी पुरानी बीमारियों को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं. यह एक सुरक्षा कवच है, ताकि आप खर्चों की चिंता किए बिना अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाएं !
प्रतीक्षा अवधि: प्रतीक्षा अवधि पॉलिसी खरीदने और इसके लाभों के लिए क्लेम कर पाने के बीच का समय होता है. यह अवधि अलग-अलग हो सकती है, जो पॉलिसी, इंश्योरेंस प्रदाता और पहले से मौजूद बीमारियों पर निर्भर करती है. यह कुछ महीनों से कुछ वर्षों तक हो सकती है. उदाहरण के लिए, अगर आप पहले से मौजूद बीमारियों के लिए 2-वर्ष की प्रतीक्षा अवधि वाली हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते हैं, तो प्रतीक्षा अवधि समाप्त होने तक आप उन स्थितियों के लिए लाभ क्लेम नहीं कर पाएंगे. अगर आपको लंबे समय से कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो आपको प्रतीक्षा अवधि को पूरा करना होगा, क्योंकि आप इसके लाभों के लिए तुरंत क्लेम नहीं कर पाएंगे. समय पर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने से आप यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि जब आपको इसके लाभों के लिए क्लेम करने की ज़रूरत पड़े, तब तक आपकी प्रतीक्षा अवधि पूरी हो चुकी हो और आप बिना इंतज़ार के तुरंत इसका लाभ ले पाएं !
को-पेमेंट: जब किसी को गंभीर या पुरानी बीमारी होती है, तो उन्हें अक्सर नियमित मेडिकल केयर की आवश्यकता होती है, जिसमें काफी खर्च हो सकता है, जैसे हॉस्पिटल विज़िट, टेस्ट और दवाएं. को-पेमेंट या को-पे का विकल्प तब मिलता है, जब आप और आपका हेल्थ इंश्योरेंस दोनों मिलकर आपके मेडिकल खर्चों का भुगतान करते हैं. इसका मतलब यह है कि इंश्योरेंस होने पर भी आपको हर बार मेडिकल केयर प्राप्त करने के लिए अपनी जेब से कुछ राशि का भुगतान करना होगा. उदाहरण के लिए, अगर आपके इंश्योरेंस प्लान में को-पेमेंट का नियम लागू होता है, तो आपको हर बार डॉक्टर को दिखाने या प्रिस्क्रिप्शन प्राप्त करने में होने वाले खर्च का एक निश्चित प्रतिशत तक स्वयं भुगतान करना पड़ सकता है. आदर्श रूप से, आपको ऐसी पॉलिसी चुननी चाहिए जिसमें को-पेमेंट नियम लागू न हो. अगर आपकी गंभीर स्थिति के कारण यह संभव नहीं है, तो कम से कम को-पेमेंट वाला प्लान चुनें, ताकि अधिकांश खर्चों का भुगतान बीमा कंपनी ही करे !
बीमारी के अनुसार सब-लिमिट: जब व्यक्ति को लंबे समय से चल रही कोई बीमारी होती है, तो उनके लिए यह ज़रूरी होता है कि उन्हें अपने हेल्थ इंश्योरेंस और उसकी कवरेज की पूरी समझ हो. कुछ इंश्योरेंस पॉलिसी में बीमारी के अनुसार सब-लिमिट होती है, जिसका मतलब है कि किसी विशिष्ट स्थिति में कितनी इंश्योरेंस राशि का भुगतान किया जाएगा इसकी एक सीमा होगी. उदाहरण के लिए, अगर आपकी पॉलिसी में डायबिटीज़ के इलाज के लिए 50,000 रुपये की लिमिट है, तो डायबिटीज़ से संबंधित खर्चों के लिए केवल 50,000 रुपये तक का ही भुगतान किया जाएगा, भले ही आपके इलाज में आया कुल खर्च अधिक हो. यह एक समस्या हो सकती है, क्योंकि आपको बकाया राशि का भुगतान अपनी जेब से करना पड़ सकता है. अचानक होने वाले खर्चों से बचने के लिए ऐसी हेल्थ पॉलिसी चुनें जिसमें हर बीमारी के लिए अलग से खर्च की कोई सीमा न हो. इस तरह आपका इलाज का खर्च पूरा कवर हो जाता है, जिससे आप अपनी पुरानी बीमारी को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं और फाइनेंशियल बोझ से भी बच सकते हैं !
फाइनेंशियल सिक्योरिटी: हेल्थ इंश्योरेंस आपकी पुरानी बीमारियों को संभालने में ज़रूरी फाइनेंशियल सहायता प्रदान करता है. यह मेडिकल खर्चों को कवर करने, आवश्यक सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने और जटिलताओं को रोकने में मदद करता है. यह सहायता व्यक्ति को फाइनेंशियल तनाव के बिना अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने, संपूर्ण स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का मौका देती है.
पुरानी बीमारियां सभी आयु के अधिक लोगों को प्रभावित कर रही हैं, इसलिए फाइनेंशियल रूप से तैयार होना बहुत महत्वपूर्ण है. क्रॉनिक बीमारियों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस लेने से आपको अपनी बचत का पैसा खर्च किए बिना इलाज का खर्च वहन करने में मदद मिल सकती है. सहीं इंश्योरेंस प्लान से यह सुनिश्चित होता है कि आपको अपनी ज़रूरत के मुताबिक देखभाल प्राप्त हो. याद रखें, अभी तैयार रहने से आपको भविष्य में मदद मिल सकती है और आपको मन की शांति का अनुभव होता है !
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